ஸுந்தரகாண்டம் இருபத்தி ஐந்தாவது ஸர்கம் ஒலிப்பதிவு; Sundarakandam 25th sargam audio mp3
Sundarakandam 25th sargam lyrics below, aligned to the book Govinda Damodara Swamigal used for parayanam. கோவிந்த தாமோதர ஸ்வாமிகள் பாராயணம் செய்த புத்தகத்தில் உள்ளபடி ஸுந்தரகாண்டம் இருபத்தி ஐந்தாவது ஸர்கம்
सुन्दरकाण्डे पञ्चविंशस्सर्ग:
अथ तासां वदन्तीनां परुषं दारुणं बहु।
राक्षसीनामासौम्यानां रुरोद जनकात्मजा।।5.25.1।।
एवमुक्ता तु वैदेही राक्षसीभिर्मनस्विनी।
उवाच परमत्रस्ता भाष्पग्द्गदया गिरा।।5.25.2।।
न मानुषी राक्षसस्य भार्या भवितुमर्हति।
कामं खादत मां सर्वा न करिष्यामि वो वचः।।5.25.3।।
सा राक्षसीमध्यगता सीता सुरसुतोपमा।
न शर्म लेभे दुःखार्ता रावणेन च तर्जिता।।5.25.4।।
वेपते स्माधिकं सीता विशन्ती वाङ्गमात्मनः।
वने यूथपरिभ्रष्टा मृगी कोकैरिवार्दिता।।5.25.5।।
सा त्वशोकस्य विपुलां शाखामालम्ब्य पुष्पिताम्।
चिन्तयामास शोकेन भर्तारं भग्नमानसा।।5.25.6।।
सा स्नापयन्ती विपुलौ स्तनौ नेत्रजलस्रवैः।
चिन्तयन्ती न शोकस्य तदान्तमधिगच्छति।।5.25.7।।
सा वेपमाना पतिता प्रवाते कदली यथा।
राक्षसीनां भयत्रस्ता विवर्णवदनाभवत्।।5.25.8।।
तस्याः सा दीर्घविपुला वेपन्त्या सीतया तदा।
ददृशे कम्पिनी वेणी व्यालीव परिसर्पती।।5.25.9।।
सा निःश्वसन्ती दुःखार्ता शोकोपहतचेतना।
आर्ता व्यसृजदश्रूणि मैथिली विललाप च।।5.25.10।।
हा रामेति च दुःखार्ता हा पुनर्लक्ष्मणेति च।
हा श्वश्रु मम कौसल्ये हा सुमित्रेति भामिनी।।5.25.11।।
लोकप्रवादः सत्योऽयं पण्डितैः समुदाहृतः।
अकाले दुर्लभो मृत्युः स्त्रिया वा पुरुषस्य वा।।5.25.12।।
यत्राहमेवं क्रूराभी राक्षसीभिरिहार्दिता।
जीवामि हीना रामेण मुहूर्तमपि दुःखिता।।5.25.13।।
एषाल्पपुण्या कृपणा विनशिष्याम्यनाथवत्।
समुद्रमध्ये नौः पूर्णा वायुवेगैरिवाहता।।5.25.14।।
भर्तारं तमपश्यन्ती राक्षसीवशमागता।
सीदामि खलु शोकेन कूलं तोयहतं यथा।।5.25.15।।
तं पद्मदलपत्राक्षं सिंहविक्रान्तगामिनम्।
धन्याः पश्यन्ति मे नाथं कृतज्ञं प्रियवादिनम्।।5.25.16।।
सर्वथा तेन हीनाया रामेण विदितात्मना।
तीक्ष्णं विषमिवास्वाद्य दुर्लभं मम जीवितम्।।5.25.17।।
कीदृशं तु मया पापं पुरा जन्मान्तरे कृतम्।
यनेदं प्राप्यते दुःखं मया घोरं सुदारुणम्।।5.25.18।।
जीवितं त्यक्तुमिच्छामि शोकेन महता वृता।
राक्षसीभिश्च रक्षन्त्या रामो नासाद्यते मया।।5.25.19।।
धिगस्तु खलु मानुष्यं धिगस्तु परवश्यताम्।
न शक्यं यत्परित्यक्तुमात्मच्छन्देन जीवितम्।।5.25.20।।
ॐ तत्सत् इति श्रीमद्रामायणे सुन्दरकाण्डे पञ्चविंशस्सर्ग:।।